तुम्हारी आवाज़ की खनक सुनकर
हवा साज़ में बदल जाती है
बजने लगते हैं सुर
हौले से मेरे कानों में
घोलते मधुरस भरे गीत
जीत लेना चाहती हूँ
तुम्हारी निःशब्दता
अपने शब्दों के रूप से
जैसे विंग्स की कहानी का मौन
विजित करता
एक ऑस्कर प्रतिमा
तुम्हारी नींद में जागना चाहती हूँ
लम्बी काली रातों में
जैसे उत्तरी ध्रुव पर किरणें
डालती हैं पहरा महीनों तक
सोना चाहती हूँ पृथ्वी के अनन्त तक
हर पल सजगता लिए
कि तुम बने रहो प्रहरी काल के
तुम्हारी आँखों की कोरों पर
खोजना चाहती हूँ खुशियों की नमीं
जिसे जोसेफिन नहीं देख सकी थी
नेपोलियन की आँखों में
तुम्हारे दुःख को
मढ़ लेना चाहती हूँ
अपने सीने में
जैसे डेसडेमोना की मासूमियत ने
उतार लिया था ऑथेलो का खंज़र
चाहती हूँ कि मेरी साँसों में अनवरत
चलता रहे तुम्हारा प्रेम
जैसे समय चलता है
बिग बैंग के धक्के से
मैं रुकना चाहती हूँ
किसी कलम की तरह
तुम्हारी जीवन पाण्डुलिपि के
आखिरी पृष्ठ पर
कुछ इस तरह
कि फिर कुछ लिखे जाने की
गुंजाइश शेष न रहे
● सीमा बंगवाल
ReplyDeleteमैं रुकना चाहती हूँ
किसी कलम की तरह
तुम्हारी जीवन पाण्डुलिपि के
आखिरी पृष्ठ पर
कुछ इस तरह
कि फिर कुछ लिखे जाने की
गुंजाइश शेष न रहे
वाह कितनी खूबसूरत पंक्तियां
ReplyDeleteमैं रुकना चाहती हूँ
किसी कलम की तरह
तुम्हारी जीवन पाण्डुलिपि के
आखिरी पृष्ठ पर
कुछ इस तरह
कि फिर कुछ लिखे जाने की
गुंजाइश शेष न रहे
वाह कितनी खूबसूरत पंक्तियां
शुक्रिया...आभार आपका💐
ReplyDeleteखूबसूरत बिम्बों से सजी यह कविता प्रेम को उसकी उत्कटता में जीने का बेहतरीन शाब्दिक चित्र है । वर्तमान की पुस्तक के पन्ने प्रेम की शीतल समीर के झोंके से पलटते हैं और बीते समय के साहित्य के पात्रों की दुनिया मे ले जाते हैं जहाँ प्रेम अपनी द्वंद्वात्मकता में एक नया आख्यान रचता है। बेशक हम उन पात्रों के चरित्र से बाहर निकलकर एक नया चरित्र गढ़ना चाहते हैं जिसमे प्रेम अनवरत शिल्पकार की भूमिका का निर्वाह करता है।
ReplyDeleteसमकालीन कविता के मुहावरे में यह कविता उस ऊँचाई की ओर बढ़ने का प्रयास कर रही है जहाँ उसकी मंज़िल है । बधाई और शुभकामनाएं
इतने मधुर एहसास के साथ कलम रुकना क्यों चाहती है..... गुंजाइश ऐसी रहे कि कुछ न कुछ प्रेमपरक लिखा जाता रहे.... जीवन की पांडुलिपि पर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह। बहुत प्यारी रचना। बधाई।
ReplyDeleteखूबसूरत बिम्ब उकेरे हैं इस पकवान कमाल की रचना में ... अंतिम कुछ पंक्तियाँ प्रेम की परिकाशठा हैं ..
ReplyDeleteआप सभी का शुक्रिया।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रेम कविता
ReplyDeleteसुन्दर।
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