जो फूल बसन्त का इंतज़ार किये बिना
मुझसे मिलने चले आए थे
मेरी साँसों की चौखट पर
आज भी पड़े हैं
उनकी ताज़गी भी जाती रही
तुम्हारे नासमझी में रूठने से
प्रेम जाने किस दिशा में उड़ गया
जैसे प्यासे पंछी मुख मोड़ लेते हैं
पोखर सूखने की आशंका से
अभी भी दीवार पर टंगी है
अल्हड़ उम्र की एक तस्वीर
चित्र में खिंची लकीरों की तरह
मौसम में कुछ नहीं बदला है
बहुत कठिन होता है
महसूस करना प्रेम की गूढ़ता
सारी ज़रूरतों से अलग
प्रेम मन के अनंत में समा जाता है
प्रेम के बग़ैर मर जाता है संसार
जैसे रेत के बिन खत्म हो जाते हैं रेगिस्तान
◆ सीमा बंगवाल
बहुत सुन्दर..भावों और शब्दों का उत्कृष्ट संयोजन.
ReplyDeleteवाह!गज़ब ।
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया।💐
Deleteसुन्दर।
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