जब जीवन स्थिर हो जाता है
जब दुनिया शांत हो जाती है
एक गाँव की तरह दिखने वाला संसार
छोटे छोटे मोहल्लों में बंटा नज़र आता है
शेष बचता है डर
जो हम सबके मन के अंदर है
वो ही बाहर बेख़ौफ़ सड़कों पर घूमता है
ये ज़हर उस प्याले में नहीं
जिसे सुकरात ने पिया
दहशत का सायनाइड
अपनी मिठास से
सारे जीवन लीलने को तैयार है
प्रलय का समय आता दिखता है
कयामत का दिन
अपने आने के इंतज़ार में
धर्मो के सारे समाधान करने को हैं
जातियाँ अस्तित्व खोने के लिए तैयार हैं
शहर की साँसे थम गई हैं
ये कैसे दिन हैं जो रातों से ज़्यादा काले हैं
चोर और हत्यारे तक
अपने घरों में रहने को हैं मजबूर
जिंदा रहने की ज़रूरतें बनाती हैं
समाज मे असमान वितरण की खाई
जो अराजकता की ओर अग्रसर हैं
मजबूर हैं अन्नदाता
भूख और जीवन मे से
एक को चुनने के लिए
धूल जम रही है मजदूर की
कुदाल, हथोड़े और फावड़े पर
कंपनियों से बाहर आते लोग
बेरोजगार हो गए हैं
समाज की वहशी निगाहों से बचकर
स्त्रियाँ घर में सुरक्षित होने का भ्रम पालती हैं
ग्लोबल वार्मिंग की वार्ताएं असफल हैं
चहचहाते पंछी उड़ते हैं झुण्ड में
उनके पंखों पर ज़हरीली हवाओं का बोझ
कुछ कम है
सूडान के तड़पते बच्चे को
चील का निवाला बनते हुए
अब नहीं देखता कोई केविन कार्टर
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सबसे अलग एक विचार जन्म लेता है
खाली हाथ मौत को गले लगाने वाला
हर कोई सिकंदर नहीं होता
●सीमा बंगवाल
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https://m.youtube.com/watch?feature=share&v=VrdlstVYDSQ
खाली हाथ मौत को गले लगाने वाला
ReplyDeleteहर कोई सिकंदर नहीं होता
बहुत खूब ,अति उत्तम
काल चक्र है ये
ReplyDeleteसमय के फेर में डर स्वाभाविक जागता है पर उसका सामना करना आसान नहि होता ... गहरे भाव ...
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