जाने कितने चाँद,सितारे,क्षुद्रग्रह
फिर भी उसकी शिकायतों में
उसका खालीपन
अपने विहंगम बोध में
वह अपनी तुलना करता
सागर के नीलेपन से
जहाँ कभी शुरू हुआ था पृथ्वी पर जीवन
कोयसरवेट्स के रूप में
उसने ही बिखराए थे
सम्पूर्ण सृष्टि में जीवन के अगणित रंग
उसके कांधे पर सर रखकर ज़ार ज़ार रोती नदियाँ
उनके आँसुओं का खारापन मिल जाता नभ के आँसुओं में
जमा हो जाता कहीं सागर की तलहटी में
आकाश अपनी अनभिज्ञता में नहीं देख पाता
पृथ्वी पर जीवन की असीमता
जीवों की कल्पना में आसमान से ऊँचे स्वप्न
कल्पना की रंग-बिरंगी परियाँ
उतरती जादू की छड़ी के साथ
वह विस्मृत करता
मानव निर्मित मिसाइलों के आलिंगन
नहीं विस्मृत कर पाता
अंतरिक्ष मे डूब चुके उपग्रहों का प्रेम
वह विचरण करता
उड़नतश्तरियों की कल्पनाओं में
एलियन्स की दुनिया के आभासी अस्तित्व में
नीली विशाल छत पर
चहलकदमी करते उपग्रहों में
तलाशता जीवन की संभावनाएं
उसकी बाहों के घेरे में है पृथ्वी
उसकी विस्मृति में ब्रह्मांड का सत्य
निर्जीवों के संसार में जन्म लेते सजीव
जाने कितनी प्रेमिकाओं सी आकाशगंगाएं
जाने कितनी मंदाकिनियाँ
दानवीर आकाश
उनके बीच बांटता अपना सर्वस्व
आकाश के अनिर्मित परिवार में
समंदर सदृश जाने कितने जीवन बनने शेष हैं अभी
जाने कितनी प्रेमिकाएं
अभी बाहों में आने को हैं आतुर
यद्यपि वह भिज्ञ है जीवों की दृष्टिसीमा से
कि वायुमंडल के सूक्ष्म कणों के कारण ही
अस्तित्व में है उसका आभासी अनंत
लेकिन आकाश के खालीपन में
एकांत के आँसुओं के
अनेक संसार हैं ।
●●●●सीमा बंगवाल
आपकी शैली और शब्दों का चयन अनुपम है। हेडबार को बदल दें तो और सुन्दर लगेगा आपका ब्लॉग। शुभकामनाएं आपको। प्रकृति प्रेमी इंसान सच में ही बेहद प्रिय हैं मुझे
ReplyDeleteलेकिन आकाश के खालीपन में
ReplyDeleteएकांत के आँसुओं के
अनेक संसार हैं ।
वाह सुंदर सृजन
सरिता जी का आभार🙏
Deleteप्रकृति से लगाव आपके कविता मे झलकता है
ReplyDeletehttps://yourszindgi.blogspot.com/2020/04/blog-post.html?m=1
शुक्रिया। प्रकृति के बिना जीवन सम्भव कहाँ।
Deleteशुक्रिया अजय जी...प्रयास करती हूँ।
ReplyDeleteप्रकृति प्रेम का सुंदर चित्रण
ReplyDeleteThanks..💐
Deleteलेकिन आकाश के खालीपन में
ReplyDeleteएकांत के आँसुओं के
अनेक संसार हैं ।
वाह बहुत ही सुंदर ,
शुक्रिया
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