Friday 29 May 2020

तो हम न होते / सीमा बंगवाल



गगन और वसुधा की दूरी 
पूर्णता का बोध कराती
आधे होकर ही अच्छे हैं
पूरे होते तो हम न होते.....

सपनों की गठरी को बांधे
एक एक सपना टूटा मेरा
ख़्वाब हैं तो ही अच्छे हैं
सच होते तो हम न होते....

प्रभा -निशा के बंधन जैसे 
दुनिया में सुख दुःख हैं होते
शोक है मन में तो ही अच्छा है
खुशियाँ होती तो हम न होते....

जीवन की राहें थी लंबी
नहीं ठिकाना दूर तलक था
रस्ते तो फिर भी अच्छे हैं
मंज़िल होती तो हम न होते....

प्रेम भँवर में सारे प्राणी
जीवन में संग ढूँढ़ते फिरते
तन्हा हैं तो ही अच्छे हैं
वो मिलता तो हम न होते...

जल की मीन लगाती गोते
बरसों ये प्यासी ही रहती
नदिया बहती तो ही अच्छी है
सागर होते तो हम न होते....

कितनी उम्मीदों के सिर पर
जीवन आते जाते रहते
दिल का मरना ही अच्छा है
जीवन जीते तो हम न होते....

● सीमा बंगवाल

6 comments:


  1. बहुत गहरी बात ...

    कितनी उम्मीदों के सिर पर
    जीवन आते जाते रहते
    दिल का मरना ही अच्छा है
    जीवन जीते तो हम न होते....

    भावपूर्ण रचना.

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  2. कितनी उम्मीदों के सिर पर
    जीवन आते जाते रहते
    दिल का मरना ही अच्छा है
    जीवन जीते तो हम न होते....
    अच्छी रचना !

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