मेरी मनुष्यता
उसके पौरुष में सिमटने लगी
उसने कहा तुम अनुगामिनी हो
मेरा सहचर्य
उसके पदचिह्नों में समाने लगा
उसने कहा तुम सिर्फ देह हो
मेरे प्राण
उसके शरीर में दम तोड़ने लगे
उसने कहा तुम अशक्त हो
मेरी सशक्तता
उसकी ताकत से हारने लगी
उसने कहा तुम त्याज्य हो
मेरी स्वीकार्यता
उसके अस्तित्व से याचना करने लगी
उसने कहा तुम मूर्ख हो
मेरी बुद्धिमत्ता
उसके मस्तिष्क में घुटने टेकने लगी
फिर एक दिन उसने कहा
बताओ मैं कौन हूँ
मैंने कहा तुम
मेरी मानवता मेरे सहयोग
मेरे प्राण मेरी ताकत
मेरे स्वीकार मेरी मेधा
और
मेरे रक्त से बने पुरुष हो।
● सीमा बंगवाल
निशब्द करती रचना
ReplyDeleteबधाई
शुक्रिया मैम
Deleteअपने अस्तित्व को मिटाती औरतें सिर्फ कठपुतली हो जाती हैं ।
ReplyDeleteसाधारण स्त्रियां ये बोझ धोकर मर जाएंगी किंतु कभी नहीं जान सकेंगी वो किन शर्तो पर जीती रही। आभार।
Deleteगद्य और पद्य दोनों में धाराप्रवाह शैली शब्दों का चयन बताता है कि आप दोनों ही विधाओं में सिद्ध हैं बहुत-बहुत आभार आपको और शुभकामनाएं यूं ही लिखती रहें बहती रहे हम निरंतर आप को पढ़ते रहेंगे
ReplyDeleteआपके विश्लेषण हेतु शुक्रिया....बेहद धन्यवाद।
ReplyDeleteअति उत्तम ,अजय जी ने सही कहा ,आप बहुत अच्छा लिखती है ,आप आई मेरे ब्लॉग पर इसके लिए हृदय से आभारी हूँ मैं आपकी ।
ReplyDeleteआपने वहाँ रजनीगंधा के फूल रखे थे...चोरी तो करनी थी। शुक्रिया आपका 🙏💐
Deleteशब्द-शब्द को करीने सा उकेरा है भावगाम्भीर्य लिए सार्थक सृजन.
ReplyDeleteसादर
अनिता जी आभार आपके शब्दों हेतु।
Deleteरचना सुन्दर है. वैचारिकी के स्तर पर देखा जाये तो आज भी ऐसे विषय साहित्य का अंग बने हैं. एक तरफ महिला सशक्तिकरण की बात हो रही, दूसरी तरफ पुरुष से मुकाबला भी चल रहा.
ReplyDeleteयहाँ आकर बस एक सवाल होता है.... मुकाबला पुरुष से है या पति से?
महिला सशक्तिकरण हेतु महिला को जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषप्रधान समाज की विचारधारा व स्वार्थ को जानना होगा। अभी साधारण घर की स्त्री तो स्वयं ऐसी विचारधारा के तहत पुत्र जन्म,पुरुषवाद की वकालत करती दिखती हैं।
Deleteस्त्री और पुरुष दोनों बराबर हैं .... कोई बड़ा छोटा नहीं ,किन्तु विडम्बना है कि स्त्री धर्म की बेड़ियों के साथ सदियों से जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषवादी स्वार्थ को ढोती आयी है। ये एक विचारधारा है जिसका विरोध करना चाहिए। ये सामाजिक चेतना है।
खुद का अस्तित्व मिटा कर भी स्त्री विराट ही हाई और रहेगी ...
ReplyDeleteजीवन ले इस सत्य को पुरुष का अहम न माने पर सत्यता तो यही है
प्रभावी रचना ...
शुक्रिया
Deleteबेहतरीन, स्त्री पुरुष के ऊपर है।
ReplyDeleteबराबर है .... किन्तु स्त्री को निम्न दिखाया जाता रहा है।
Delete